संसद के अंदर खड़े होकर मोदी जी एक और नोटबंदी की मांग कर रहे हैं। बड़े नहीं, छोटे मोदीजी अब नई नोटबंदी की मांग कर रहे हैं।

जिस 2000 की नोट को नरेंद्र मोदी ने लांच किया, उस गुलाबी नोट को सुशील मोदी बंद कर देने की बात कर रहे हैं।
जिस नई नोट ने श्वेता सिंह को चिप मामले का एक्सपर्ट बनाया, उस गुलाबी नोट को बंद कर देने की बात कर रहे हैं।
जिस नई नोट ने सुधीर चौधरी को नैनो टेक्नोलॉजी का एक्सपर्ट बनाया, उस गुलाबी नोट को बंद कर देने की बात कर रहे हैं।

जिस नई नोट ने अमीरों को और अमीर बनाया गरीबों को और गरीब बनाया, उस गुलाबी नोट को अब बंद कर देने की मांग कर रहे हैं। जिसको आरबीआई ने छापना बंद कर दिया है। यानी जिसके नाम पर सरकार ने आपसे मजाक किया है।
अब उसकी वैधता खत्म कर देने की मांग कर रहे हैं।

सवाल ये है कि इतने बड़े कदम को वापस ले लेना कोई आसान काम है क्या? नोटबंदी करके, सैकड़ों की बलि लेकर, हजारों को बर्बाद करके, लाखों को बेरोजगार करके
करोड़ों को परेशान करके, सवा सौ करोड़ भाइयों और बहनों के लिए जो नई नोट शुरू की गई, उसके बारे में कह रहे हैं इसे वापस ले लो।

ऐसे कैसे वापस ले लेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी!
अंबानी का आदेश आया क्या?
अडानी का आदेश आया क्या?
छोड़ो वो तो बड़े बड़े पूंजीपति हैं,
सुधीर चौधरी का ख्याल आया ?
क्या श्वेता सिंह का ख्याल आया क्या?
ऐसे कैसे नई वाली नोट को वापस ले लेंगे!

एक ही चैनल में काम करते हैं अब दोनों एक साथ।
गुस्से में मोदीजी की ऐसी की तैसी कर देंगे।
‘जी मोदी जी’ कहकर मिमियाते हैं जो पत्रकार
‘जी मोदी’ या फिर ‘मोदी जी’ कह देंगे
आगे या पीछे से एक ‘जी’ कम कर देंगे।
सुधीर चौधरी तो छोड़कर ही आए हैं ज़ी न्यूज़,
मगर ये मत सोच लेना कि जी हुजूरी बंद कर देंगे।

(आप पढ़ रहे हैं वीडियो एपिसोड का ट्रांसक्रिप्शन लेख, आगे विस्तार से पढ़ें)

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील मोदी, भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी, संसद के अंदर खड़े होकर इस बात को मान रहे हैं कि 2000 की नई नोट किसी काम की नहीं है. इसे जल्द से जल्द बंद कर देना चाहिए। नरेंद्र मोदी के डर से शायद ये नहीं कह सके कि नोटबंदी का फैसला भी फेल हो गया, अब PM को माफी मांग लेनी चाहिए।

वो इस नोट की जमाखोरी का मुद्दा उठा रहे हैं, वो इस नोट की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं, उनकी सरकार ने ऐतिहासिक ब्लंडर कर दिया, बस यही बात खुलकर नहीं कह पा रहे हैं।

हालांकि सुशील मोदी कुछ कहें या ना कहें , समझ में आता है कि उनकी राजनीतिक मजबूरी है मगर जिनको कुछ कहना चाहिए, जिनको सवाल करना चाहिए वो कुछ नहीं कह रहे हैं, वो सवाल नहीं कर रहे हैं, उनकी क्या मजबूरी है?

नोटबंदी के वक्त के बयान याद कीजिए ₹-सरकार के लोग बस सरकार के फैसले का बचाव कर रहे थे मगर टीवी पर बैठे ये एंकर उनसे एक कदम आगे चले जा रहे थे।

श्वेता सिंह 2000की नोट में चिप बता रही थीं, जमीन के अंदर तक सिग्नल पकड़ने की बात बता रही थीं और सुधीर चौधरी नैनो टेक्नोलॉजी के एक्सपर्ट बने जा रहे थे।

इन दो एंकरों की हरकतें कैमरे पर कैद हैं, मगर सभी टीवी चैनलों के सभी एंकर लगभग ऐसी ही बात बता रहे थे।
भ्रष्टाचार खत्म हो जाने का सपना दिखा रहे थे, काला धन खत्म कर देने वाला फैसला बता रहे थे। नक्सलवाद और आतंकवाद की रीढ़ तोड़ देने का रोडमैप दिखा रहे थे।
हुआ क्या? नतीजें सबके सामने हैं।

भ्रष्टाचार और काला धन घटने के बजाय बढ़ने लगा।
और आतंकी गतिविधियों पर किसी भी तरह का कोई रोक नहीं लगा। नोटबंदी के बाद जिन नई नोटों की शुरुआत की गई उनका भी अता पता नहीं है कि करोड़ों नोट कहां चली गई।

आरबीआई के आंकड़ों पर आधारित दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट है कि 9 लाख 21 हजार करोड रुपए की कीमत के 1680 करोड़ नई नोट कहां गई? 1 लाख 8 हजार करोड़ की कीमत की 54 करोड़ गुलाबी नोट कहाँ चली गईं? 8 लाख 13 हजार करोड की कीमत की 1626 करोड़ 500 वाली नोट कहां गई?

रिपोर्ट के हिसाब से अंदाजा है कि गुमनामी का मतलब है कि इतनी बड़ी राशि अब काला धन बन गई? मतलब नोटबंदी करने के बाद काला धन खत्म होने के बजाय लाखों करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हो गई।

इतनी बड़ी घटना के बावजूद। इस त्रासदी इस विडंबना के बावजूद। अगर मीडिया वाले सरकार से सवाल नहीं कर रहे हैं। तो नोट बदलने से पहले उन्हें बदल दीजिए।

अब ये नहीं कि रिमोट उठाकर बस चैनल बदल दीजिए।
बदनाम एंकर को छोड़कर कम बदनाम हुए एंकर को पकड़ लीजिए।

आपकी आवाज को जो उठाएं वैकल्पिक मीडिया के लोग।
उन्हें देखने सुनने और सहयोग करने की आदत डाल लीजिए।
खुद जागरूक हैं तो अच्छी बात है और लोगों को भी जागरुक कीजिए।

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