बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत मौत के बाद महीनों तक बयानबाजी करने वाली कंगना रनौत पर शिवसेना सरकार पलटवार कर रही है। बीएमसी के जरिए कंगना के स्टूडियो पर बुलडोजर चलवाकर दमनात्मक कार्यवाई का परिचय दे रही है।

इसी विवाद पर टिप्पणी करते हुए पत्रकार श्याम मीरा सिंह फेसबुक पर लिखते हैं-

BMC ने कंगना का मुम्बई स्थित स्टूडियो तोड़ दिया है।
ये बदले की राजनीति है, अपनी व्यक्तिगत आलोचनाओं का बदला आप सरकारी मशीनरी से ले रहे हैं, इससे अधिक फासीवाद क्या होगा।

मैं स्वयं कंगना की घटिया राजनीति का समर्थक नहीं रहा, उनसे मेरा कोई लगांव नहीं है, बल्कि उनके विचारों से बराबर घृणा और धिक्कार का भाव रखता हूँ। पर महाराष्ट्र सरकार द्वारा की गई इस छिछली हरकत को स्ट्रोंगली कंडेम करता हूँ।

हम एक फासीवाद पर दूसरे फासीवाद को प्राथमिकता नहीं दे सकते। कंगना एक निकृष्टतम महिला है, उसके दंगाई और अवसरवादी चरित्र ने इस देश की डेमोक्रेसी को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है, बावजूद उसके प्रति हमारे व्यवहार से ही तय होगा कि हम स्वयं कितने लोकतांत्रिक हैं, या हमारे लिए भी लोकतंत्र सिर्फ एक कविता का नाम है, जो सिर्फ विपरीत परिस्थितियों में गाई जाती है, जैसे पूरी जवानी फासीवाद का समर्थन करने वाली कंगना आज स्वयं लोकतंत्र की दुहाई दे रही हैं।

हमारा लोकतांत्रिक होना किसी के फासीवादी होने से ढीला नहीं होना चाहिए, लोकतांत्रिक होना हमारे स्वयं के लिए है, लोकतांत्रिक होना हमारी शिक्षा की अभिव्यक्ति है। लोकतांत्रिक होने में If, no, But नहीं चल सकते।आप या तो लोकतांत्रिक हैं, या नहीं हैं। आप स्थिति-परिस्थितियों के अनुसार लोकतांत्रिक होना नहीं चुन सकते।

कंगना की धूर्त और संप्रदायिक हरकतों का जबाव, दूसरी किस्म की धूर्तता पर स्नेह जताकर नहीं दे सकते, अनैतिकता का जबाव अनैतिकता के ही संसाधन जुटाकर नहीं दिया जा सकता। कंगना जिस खेमे से आती हैं वह अलोकतांत्रिकता, असंवेदनशीलता और अनैतिकता के महारथी है।

वे इसके पुराने खिलाड़ी हैं, फासीवाद उनकी होम पिच है, आप उनकी पिच पर खेल रहे हैं तब तो आपका हार जाना तय है, लेकिन आपके हारने से पहले ही लोकतंत्र की लड़ाई भी सैद्धांतिक तौर पर हार चुकी होगी।

आपको समझना चाहिए अनैतिकता के साम्राज्य का बदला, अनैतिकता के ही छुटमुट संसाधन जुटाकर नहीं लिया जा सकता। अनैतिकता के खिलाफ की लड़ाई नैतिकता के संसाधनों से ही लड़ी जा सकती है। गांधी और शिवाजी के आदर्शों पर चलने वाले अपने संघर्षों में अनैतिकता का सहारा नहीं ले सकते।

कंगना से मेरी रंच भर भी सहानुभूति नहीं है, बल्कि उनसे मेरा बराबर विद्वेष है, मुझे उनसे घृणा है, उनके विचारों से घृणा है, लेकिन उनके दंगाई विचारों का जबाव हम संवैधनिक और नैतिक बने रहकर भी दे सकते हैं। इसके लिए कंगना और अमित शाह बनना जरूरी नहीं है। ये गलत परिपाटी है।

मैं महाराष्ट्र सरकार के इस फासीवादी, अलोकतांत्रिक हरकत की मुखालफत करता हूँ।

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