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झारखंड चुनावों के बीच जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नागरिकता संशोधन (CAA) कानून लेकर आई तो ऐसा कहा गया कि वो हिंदुओं को लुभाने के लिए ही धर्म पर आधारित कानून लेकर आई है। वहीं ये भी अटकलें लगाई गईं कि अगर ध्रुविकरण होता है तो इसका फायदा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को भी मिल सकता है। लेकिन नतीजों ने दोनों ही अटकलें खारिज कर दीं।

अबतक के रुझानों के मुताबिक, बीजेपी को जनता ने सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। पार्टी बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे है। अबकी बार 65 पार का नारा देने वाली बीजेपी महज़ 25 सीटों पर सिमटती दिखाई दे रही है।

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वहीं ओवैसी की पार्टी AIMIM की बात करें तो उसे नोटा से भी कम वोट मिले हैं। AIMIM का वोट शेयर 0.96% है, वहीं NOTA का वोट शेयर 1.46% है। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक दोपहर 2.53 बजे तक की गिनती के मुताबिक, AIMIM को सिर्फ 76584 वोट मिले हैं, जबकि NOTA के तहत 110202 वोट पड़ चुके हैं।

झारखंड चुनाव में सांप्रदायिक तुष्टीकरण की राजनीति के लिए मशहूर दोनों ही पार्टियों की इस स्थिति को लेकर कांग्रेस नेता सलमान निज़ामी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।

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उन्होंने बोलता हिंदुस्तान से बात करते हुए कहा, “झारखंड के नतीजे इस बात का संकेत हैं कि हमारे देश में हिंदू-मुस्लिम नफ़रत की राजनीति तकरीबन ख़त्म हो गई है। बीजेपी उन सभी प्रमुख सीटों पर हार गई है जहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत फैलाई जा रही थी और उनकी मॉब लिंचिंग की जा रही थी। लोग नौकरी, विकास और शांति चाहते हैं। वे हिंदू-मुस्लिम राजनीति से तंग आ गए हैं”।

ग़ौरतलब है कि झारखंड चुनाव में बीजेपी नेताओं की तरफ़ से राम मंदिर, धारा 370 और नागरिकता कानून के मुद्दे को भुनाने की जमकर कोशिश की गई थी। लेकिन जनता ने बीजेपी के इन तमाम सांप्रदायिक मुद्दों को दरकिनार कर दिया और स्थानीय मुद्दों को तरजीह दी। जिसके नतीजे में बीजेपी को सूबे की सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

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