ज़ी न्यूज़ के मालिक सुभाष चंद्रा को राज्यसभा सीट मिलने की एवज में ज़ी न्यूज़ ने 4 करोड़ रुपए का चंदा बीजेपी को दिया है। इस बात का दावा करते हुए फेसबुक पर सौमित्र राय लिखते हैं-

तबेले से निकला एक न्यूज चैनल किस तरह ज़ी से छी बनकर बीजेपी के तबेले में जा घुसा? अब ये चैनल देश में बेख़ौफ़ जहर फैलाता है। ठीक बीजेपी के IT सेल की तरह।

दिल्ली में काम करते हुए एक ज़माने में ज़ी न्यूज़ के दोस्तों के साथ शामें बीती हैं। उस समय ज़ी देश का सबसे लोकप्रिय चैनल हुआ करता था।

2014 में मोदी के सत्ता में आते ही सब बदल गया। इतना बदला कि सीने में नफ़रत का एजेंडा लिए घूमने लगा।

क्यों? जानना नहीं चाहेंगे?

पत्रकार और एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने इस पर बारीकी से पड़ताल की है। 2016-17 में ज़ी ने बीजेपी को 2 करोड़ का चंदा दिया। बदले में एस्सेल ग्रुप के सुभाष चंद्रा बीजेपी के टिकट पर उसी साल राज्यसभा के सांसद बन गए। ज़ी के प्लेटफार्म डिश टीवी ने भी 50 लाख का चंदा दिया।

सुभाष चंद्रा को राज्यसभा की सीट कुल 4 करोड़ में पड़ी। उनके बिक जाने के एवज में एस्सेल ग्रुप को मोदी के लिए एक और मदद करनी पड़ी।

वह थी नमो टीवी। वही जिसके बारे में भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त 2019 के आम चुनाव से पहले नादान बलमा की तरह एक्टिंग कर रहे थे। अब भेद खुल चुका है। नमो टीवी को अपलिंक किया डिश टीवी ने। बिकने के बाद पूरी तरह बिछ जाने की पूरी कीमत चुकाई सुभाष चंद्रा ने।

इसके बाद भी कैश और इलेक्टोरल बांड्स के रूप में चंद्रा ने विज्ञापन के जरिये कमाई के लिए कितनी कीमत चुकाई होगी ये कोई नहीं जानता, क्योंकि राजनीतिक दल और चुनाव आयोग इस पर साजिश के तहत चुप्पी साधे बैठे हैं।

बदले में ज़ी को बीजेपी ने जहर की फसल बोने का काम सौंपा। इसे वह बखूबी अंजाम दे रही है।

ट्विटर ने कल से एक मुहिम चलाई है। भांड़ की तरह सरकारी प्रोपोगेंडा करने वालों को सरकारी चैनल घोषित करने की। भारत में आधे से ज़्यादा चैनल बीजेपी की गोद में जा बैठे हैं।

उन्हें भी सरकारी चैनल की मान्यता देने की आवाज़ उठ रही है। होना भी चाहिए। चंदा देकर बिछ जाने को न्यूज़ नहीं, प्रोपोगंडा चैनल कहना ज़्यादा ठीक होगा।

मैंने 4 साल से न्यूज़ चैनल देखना बंद कर रखा है। इनकी जहरीली, प्रोपोगंडा वाली वेबसाइट्स से भी मुझे परहेज़ है। आप भी ज़ी का बहिष्कार करें। अभी एक चैनल के छिलके उतरे हैं।

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