आज देश में मुख्यधारा की राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर अगर किसी नेता की छवि को सुनियोजित तरीके से सबसे ज्यादा खराब किया गया है तो वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वर्त्तमान सांसद राहुल गाँधी।

जिन्हें सत्तापक्ष यानी भाजपा और उनके संरक्षण में पल रही मीडिया ने लगातार छवि को गलत ढंग से दिखाने और दुष्प्रचार करने का काम किया है।

इसी बीच राहुल गांधी के ऊपर एक पत्रकार को किताब लिखना बहुत भारी पड़ गया। जिसकी वजह से नेटवर्क 18 के पत्रकार दयाशंकर मिश्र ने पहले चैनल से इस्तीफा दिया और बाद में राहुल गाँधी पर लिखी अपनी किताब छपवाई।

दरअसल कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को सालों से मीडिया और भाजपा के आईटी सेल द्वारा लगातार छवि को धूमिल किया जाता रहा है। राहुल गाँधी के चरित्र और निजी जीवन को लेकर भी कई बार बहुत ही निचले स्तर पर टिप्पणियाँ की गई, लेकिन राहुल गाँधी भारतीय राजनीति में लगातार अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराने के लिए लोगों के बीच दिखते रहे हैं।

फिलहाल नेटवर्क 18 के पत्रकार दयाशंकर मिश्र ने राहुल गाँधी के इन्हीं राजनितिक संघर्षों और यात्राओं पर एक किताब लिखी है। जिसका नाम ‘राहुल गांधी’- साम्प्रादायिकता, दुष्प्रचार, तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष शीर्षक से यह किताब लिखी है। जिसके बाद उन्हें चैनल से अपनी नौकरी गंवानी पड़ गई।

लेखक और पत्रकार दयाशंकर मिश्र को राहुल गांधी पर लिखी किताब को पब्लिश होने से भी रोका गया। लेकिन पत्रकार ने राहुल गाँधी पर लिखी अपनी किताब को चुना और चैनल की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

राहुल गाँधी पर लिखी अपनी किताब के एवज़ में लेखक को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ गया, क्योंकि नेटवर्क 18 चैनल ने उनके सामने नौकरी या किताब को चुनने का विकल्प दिया था। जिसके बाद पत्रकार दया शंकर मिश्र ने किताब को चुना और इस्तीफा दे दिया।

अपने इस्तीफे में लेखक ने लिखा है- “राहुल गांधी पर सच लिखना क‍ितनी मुश्‍किलें खड़ी करेगा, मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था। ऐसे समय जब सत्‍ताधीशों पर गाथा-पुराण ल‍िखने की होड़ लगी हो, मैंने सोचा था कि एक लोकनीत‍िक व‍िचारक की सोच, दृष्टि और दृढ़ता को संकल‍ित कर प्रस्‍तुत करना क‍िसी को क्‍यों परेशान करेगा? लेकिन मैं ग़लत साबित हुआ।”

साथ ही लेखक शंकर मिश्र ने होने इस्तीफे में लिखा है कि -“मेरे पास विकल्प था कि मैं किताब वापस ले लूं। नौकरी करता रहूं। चुप रहूं। लेकिन, मैंने किताब को चुना। जो हमारा बुनियादी काम है, उसको चुना। सच कहने को चुना। इसलिए, पहले इस्तीफ़ा, फिर किताब।”

नेटवर्क 18 न्यूज़ चैनल से इस्तीफा दे चुके पत्रकार/लेखक दया शंकर ने राहुल गाँधी पर लिखी अपने किताब के बारे में भी बताया है। उन्होंने लिखा है कि -“यह किताब असल में न्यूज़रूम के हर उस समझौते का प्रायश्चित है, ज‍िसने छापा नहीं, छ‍िपाया। इसमें राहुल गांधी के ख़िलाफ़ 2011 से शुरू हुए दुष्प्रचार की तथ्यात्मक कहानी और ठोस प्रतिवाद है। किस तरह से मीडिया ने लोकतंत्र में अपनी परंपरागत और गौरवशाली विपक्ष की भूमिका से पलटते हुए न केवल सत्ता के साथ जाना स्वीकार किया, बल्कि व‍िपक्ष यानी जनता की प्रतिनिधि आवाज़ को जनता से ही दूर करने, उसकी छवि को ध्वस्त करने की पेशागद्दारी की। न्यूज़रूम और दुष्‍प्रचारी IT सेल के अंतर को मीडिया ने मिटा दिया। यह किताब साम्प्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही के ख‍िलाफ राहुल गांधी के संघर्ष का व‍िश्‍लेषण है।”

लेखक दया शंकर मिश्र ने भाजपा पोषित टीवी मीडिया जिसे आज गोदी मीडिया के नाम से भी लोग जानते हैं। उन्होंने अपने इस किताब में बतलाया है कि कैसे भाजपा संरक्षित टीवी मीडिया और आईटी सेल के अंदर से राहुल गाँधी को लेकर सुनियोजित तरिके से उनकी छवि को कमजोर और बदनाम करने की साजिशें रची जाती है। जिससे राहुल गाँधी को लेकर जनता के बीच एक भ्रम को दुष्प्रचारित किया जा सके। ताकि चुनाओं में राहुल गाँधी की आवाज़ को जनता गंभीरता से न ले पाए। जिसका सीधा फायदा सत्ताधारी पार्टी भाजपा को मिलता हुआ दिखाई देता है।

नेटवर्क 18 न्यूज़ चैनल से अपने किताब की वजह से इस्तीफा दे चुके पत्रकार/लेखक दया शंकर मिश्र को लेकर अब सोशल मीडिया पर लोग लिखना शुरू कर दिए हैं।

जिसमे पत्रकार रविश कुमार ने एक्स प्लैटफॉर्म पर लिखा है कि- “राहुल गांधी पर किताब लिखने पर इस्तीफ़ा देना पड़ा? दुनिया भर के पत्रकार किताब लिखते हैं। ये कौन सी कंपनी है जो किताब लिखने की अनुमति नहीं देती? प्रकाशक इसे छापने के सवाल पर चुप हो जाते हैं। नतीजा दयाशंकर मिश्र को किताब ख़ुद से छापनी पड़ी और नौकरी से इस्तीफ़ा देना पड़ा।

राहुल गांधी को अपना चैनल बनाना पड़ा क्योंकि मीडिया दिखाता नहीं। अब उन पर किताब लिखनी है तो इस्तीफ़ा देना होगा। इस्तीफ़ा देकर राहुल पर लिखने की इस ‘आज़ादी’ पर उनका क्या कहना है जो पनौती बोलने पर माफ़ी की माँग कर रहे हैं? क्या वे लोग अब कुछ कहेंगे जो गाँव गाँव घूम कर थाली पीटते हैं कि कौन-कौन चुप है। अफ़सोस!”

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