manmohan singh
Manmohan Singh
अनुराधा

भारत अभी सामाजिक और आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहा है। हाल ही में सीएए पर विरोध को लेकर दिल्ली में दंगे हुए जिसमें 53 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए। इसी बीच संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था के लिए भी लगातार मुश्किलें बढ़ रही हैं। ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने सरकार की कमियां बताते हुए उन्हें जरूरी सुझाव दिया है।

द हिंदू में प्रकाशित आलेख में उन्होंने कहा ,” भारत में इस वक्त तीन तरफा खतरा मंडरा रहा है- सामाजिक सौहार्द का विघटन, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य समस्या।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश को सिर्फ अपने शब्दों से ही नहीं, कामों से भी भरोसा दिलाना होगा कि वह हमारे सामने मौजूद खतरों से परिचित हैं। उन्हें देश को आश्वस्त करना होगा कि इससे उबरने में हमारी मदद कर सकते हैं।”

कानून व्यवस्था और मीडिया, सबने किया निराश उन्होंने दिल्ली हिंसा का जिक्र करते हुए कहा कि समाज के हिंसक वर्ग जिसमें राजनेता भी शामिल हैं, ऐसे लोगो ने सांप्रदायिक तनाव को हवा दिया और धार्मिक असहिष्णुता की आग भड़काई। कानून व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं ने नागरिकों और न्याय संस्थानों ने भी निराश किया है।

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आर्थिक संकट से बचने का उपाय उनका कहना है कि कुछ ही सालों में उदार लोकतांत्रिक तरीकों से वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास का मॉडल बनने से लेकर भारत अब बहुसंख्या को सुनने वाला ऐसा विवाद ग्रस्त देश बन गया है जो आर्थिक संकट से जूझ रहा है।

उन्होंने लिखा बदहाल अर्थव्यवस्था के समय सामाजिक अशांति से केवल आर्थिक मंदी को गति मिलेगी। सामाजिक सद्भाव आर्थिक विकास का आधार होता है और इस समय यह खतरे में है।

उन्होंने कहा कि टैक्स दरों में कितना भी बदलाव किया जाए कॉर्पोरेट वर्ग को कितनी भी सहूलियत ए दी जाए, भारतीय तथा विदेशी कंपनियां यहां निवेश नहीं करेंगे, जब तक हिंसा के अचानक भड़क उठने का खतरा बना रहेगा।

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उन्होंने सरकार को 3 सुझाव देते हुए कहा कि पहले सरकार को सारी ताकत इस समय कोरोनावायरस को रोकने के लिए लगाना चाहिए और जरूरी तैयारी करनी चाहिए। दूसरा नागरिकता संशोधन कानून को बदला जाना चाहिए या वापस ले लेना चाहिए जिससे सौहार्द वापस आ जाए। और तीसरा, विस्तृत और सटीक वित्तीय योजना लागू करनी चाहिए ताकि खपत की मांग बढ़े और अर्थवयवस्था में सुधार हो।

पूर्व प्रधानमंत्री का यह लेख सरकार और लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अब मोदी सरकार पर है कि वह इन सुझावों पर विचार विमर्श करती है या नहीं।

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