झारखंड विधानसभा में हेमंत सोरेन सरकार ने मंगलवार को ‘मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021’ पास करवा लिया है। मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के बाद झारखंड चौथा राज्य बन गया है जहाँ मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाया जा रहा है।

इस विधेयक के कानून बनने के बाद अपराधियों को आजीवन कारावास और 25 लाख तक के जुर्माने की सजा दी जा सकेगी।  ध्यान देने वाली बात है कि दो या दो से अधिक लोगों को मॉब की श्रेणी में रखा गया है। इसके अलावा इंस्पेक्टर रैंक के एक पुलिस अधिकारी को नोडल अफसर की पोस्ट पर नियुक्त किया जाएगा। उसको सुनिश्चित करना होगा कि  मॉब लिंचिंग न हो।

विपक्ष के कई नेताओं ने इस कानून का समर्थन करते हुए कहा कि मॉब लिंचिंग पर बहुत पहले कानून बन जाना चाहिए था।

विधायक और झारखंड मुक्ति मोर्चा की नेता सीता सोरेन ने अपनी सरकार द्वारा लिए गए फैसले का समर्थन करते हुए लिखा, “राज्य सरकार द्वारा सदन में भीड़तंत्र द्वारा होने वाली घटनाएं मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए ‘झारखंड भीड़-हिंसा एवं भीड़-लिंचिंग निवारण विधेयक 2021’ लेकर आई। इस कानून के आने से उन तमाम लोगों को एक सुरक्षा मिलेगी जिन्हें भीड़तंत्र द्वारा अपना शिकार बनाया जाता रहा हैं।”

 

पिछले कुछ सालों में झारखंड से मॉब लिंचिंग के बड़े मामले सामने आए हैं।  राज्य में वर्ष 2019 में भीड़ द्वारा 24 वर्षीया तबरेज़ अंसारी को एक खंबे से बांधकर बेरहमी से पीटा गया। उसके साथ आठ घंटों तक ज़्यादती होती रही और उससे ‘जय श्री राम’ के नारे भी लगवाए गए। तबरेज़ की चार दिन बाद मौत हो गई।

झारखंड राइट्स फोरम ने दावा किया कि वर्ष 2016 से 2020 तक राज्य में 29 मॉब लिंचिंग के मामले सामने आ चुके हैं। भीड़ द्वारा आदिवासियों, आदिवासी ईसाइयों और मुस्लिमों को निशाना बनाया गया है।

ऐसे में सोरेन सरकार द्वारा इस विधेयक को लाने के बड़े मायने हैं। कम से कम राज्य सरकार इस जघन्य अपराध को रोकने के लिए कदम उठाने को तैयार है।

‘आज तक’ के अनुसार भाजपा विधायकों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इसे को अचानक से लाया गया है। उनका कहना है कि इसके द्वारा पार्टी विशेष को निशाना बनाया जा रहा है। केंद्र और कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनने के बाद मॉब लिंचिंग के मामले भी तेज़ी से बढे हैं। देशभर में वर्ष 2010 के बाद से गोवंशों के नाम पर होनी वाली 90 प्रतिशत से ज्यादा हत्याएं मोदी सरकार में हुई हैं। ऐसे में भाजपा विधायकों द्वारा इस विधेयक का विरोध करना उनकी मंशा पर सवाल खड़े करता है।

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