लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका बहुत अहम है। यही वजह है कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। लेकिन मौजूदा वक्त में भारतीय मीडिया नफ़रत का कारोबार करता नज़र आ रहा है। बड़े टीवी चैनलों से लेकर देश के बड़े अख़बार तक ख़ास मक़सद के तहत सांप्रदायिक नफ़रत को धड़ल्ले से बेच रहे हैं।

जिन अख़बारों और टीवी चैनलों का दायित्व जनता की समस्याओं को उठाना था, वो अब सांप्रदायिक नफ़रत फैलाकर ख़ुद ही आम जनता के लिए समस्या बन गए हैं। टीवी चैनलों की शाम हिंदू-मुस्लिम डीबेट्स से सजाई जाती है तो सुबह अख़बारों के ज़रिए नफ़रत की चिलम थमा दी जाती है।

सांप्रदायिक नफ़रत को मौजूदा दौर में नशे की तरह परोसा जा रहा है। जिसकी अब बड़ी तादाद में लोगों को लत लग गई है। यही वजह है कि हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद विषय पर आधारित टीवी कार्यक्रम टीआरपी की दौड़ में सबसे आगे हैं।

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ठीक इसी तरह देश में वही अख़बार सबसे ज़्यादा पढ़े जाते हैं, जो समाज में नफ़रत फैलाने का काम कर रहे हैं।

हैरानी की बात तो यह है कि अब टीवी चैनल और अख़बार आपराधिक मामलों में भी मज़हब को ढ़ूढ लिया करते हैं। अपराधी और पीड़ित के धर्म के हिसाब से अख़बारों की सुर्ख़ियां बनाई जाती हैं और टीवी पर दंगल किया जाता है।

अगर अपराधी और पीड़ित का धर्म एक दूसरे से अलग है तो यह मौजूदा वक्त के भारतीय मीडिया के लिए सबसे बड़ा मसाला है।

टीवी डिबेट्स की हालत तो यह हो गई है कि अब किसी भी प्रोग्राम में हिंदू-मिस्लिम के सिवा कुछ सुनाई ही नहीं देता। मुद्दा कुछ भी हो, टीवी पर बहस सांप्रदायिक ही होती है। हद तो यह है कि बहस अगर जगहों के नाम बदलने पर भी होती है तो उसमें नाम बदलने की नीति पर सवाल उठाने वालों के मज़हब को चिन्हित कर उसपर हमला किया जाता है।

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ऐसा ही कुछ हाल में आजतक के शो दंगल में देखने को मिला। जहां मुस्लिम प्रवक्ता को धमकी दी गई कि अगर वो ख़ामोश नहीं बैठे तो किसी मस्जिद का नाम बदलकर भगवान विष्णु के नाम पर रख दिया जाएगा।

जिस मुस्लिम प्रवक्ता को धमकी दी गई, वह ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के सैय्यद आसिम वकार हैं और उन्हें जिस वजह से यह धमकी मिली, वो अपने आप में शर्मनाक है। आसिम वकार को इतनी घिनौनी धमकी सिर्फ इसलिए दी गई क्योंकि उन्होंने बीजेपी की नाम बदलने वाली राजनीति पर सवाल खड़े किए थे।

इस मामले में पत्रकारिता का शर्मनाक चेहरा तब देखने को मिला जब शो के एंकर रोहित सरदाना ने संबित पात्रा की इस धमकी पर कोई आपत्ति नहीं जताई। अपने शो में बात-बात पर जनभावना के आहत होने का हवाला देते हुए माफी मांगने के लिए कहने वाले सरदाना ने बीजेपी प्रवक्ता से माफी की अपील नहीं की।

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हद तो तब हुई जब सरदाना बीजेपी प्रवक्ता की इस धमकी पर मुस्कराने लगे और जब आसिम वकार ने इसपर आपत्ति जताई तो सरदाना ने उन्हें ही चुप करा दिया। इस प्रोग्राम को देखने के बाद यह समझना मुश्किल नहीं कि चैनल जानबूझकर नेता के साथ मिलकर सांप्रदायिक आग को हवा दे रहा है।

मौजूदा वक्त का मीडिया इतना ग़ैर-ज़िम्मेदार हो चुका है कि वह अपने फ़ायेदे के लिए देश को सांप्रदायिक आग में झोंकता चला जा रहा है। उसे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं कि उसके इस रवैये से देश में कैसा माहौल बनेगा।

क्या देश में बढ़ती लिंचिंग की घटनाओं के लिए मीडिया ज़िम्मेदार नहीं है? क्या टीवी चैनलों द्वारा  फैलाई जा रही सांप्रदायिक नफ़रत से भीड़ को हत्या के लिए प्रेरित नहीं किया जा रहा?

By: Asif Raza

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