बीजेपी के पास कुछ ऐसा नेता हैं जिनका अस्तित्व ही विवादित बयानों पर टिका है। ऐसे ही एक नेता हैं गिरिराज सिंह।

नवादा से सांसद हैं। आज तक कभी भी अपने क्षेत्र में किए विकास कार्यों की वजह से चर्चा में नहीं आएं। हमेशा विवादित बयानों की वजह से ही सुर्खियों में रहते हैं।

ऐसा कहा जा सकता है कि गिरिराज सिंह के पास विवादित बयान देने की Special Skills (खास काबिलियत) है। इन्होंने ताजा बयान सबरीमाला मंदिर को लेकर दिया। गिरिराज सिंह ने ट्वीट किया है कि…

‘केरल में RSS और बीजेपी के कार्यकर्ता की हत्या रोकने के लिए पुलिस नहीं। चर्च में रेप और जेहादी ISI में जाता है… उसे रोकने के लिए पुलिस नहीं? लेकिन सबरीमाला में श्रद्धालु को पीटने के लिए 15000 पुलिस? टीपू के अनुयायी अपना फ़र्ज़ निभा रहे.. सनातन को बचाने के लिए सबको एक होना होगा।’

पहली बात… ट्वीट में ‘टीपूँ’ लिखा है जबकि ‘टीपू’ होता है। गिरिराज सिंह राजनीति तो हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान की करते हैं लेकिन इन्हें ना तो ढंग से हिंदी लिखने आती है, ना हिंदू धर्म के बार में बारे में पता है और हिंदुस्तान के बारे में ये ‘हिंदू राष्ट्र’ से ज्यादा नहीं सोच पाते होंगे।

ख़ैर, गिरिराज सिंह अपने ट्वीट के माध्यम से ये कहना चाहते हैं कि केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राज्य में लागू न करे। उनका कहना है कि केरल की वामपंथी सरकार के पास RSS और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की हत्या रोकने के लिए पुलिस नहीं है लेकिन सबरीमाला में श्रद्धालु को पीटने लिए 15000 पुलिस है।

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अब सवाल उठता है कि इनते शक्तिशाली पार्टी के नेता केरल सरकार के सामने गिड़गिड़ा क्यों रहे हैं। जब गिरिराज सिंह को पता है कि केरल में RSS-BJP कार्यकर्ताओं की हत्या को नजरअंदाज किया जा रहा है तो इसकी जांच सीबीआई या किसी अन्य जांच एजेंसी से क्यों नहीं करवा रहे हैं। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है। तमाम जांच एजेंसी उनके अधीन है… हत्यारों को पकड़ा क्यों नहीं जा रही है?

गिरिराज सिंह अपने ट्वीट में RSS-BJP कार्यकर्ताओं की हत्या का जिक्र तो कर रहे हैं लेकिन वामपंथी कार्यकर्ताओं की हत्या का जिक्र नहीं कर रहे हैं। जबकि मरने वाले कार्यकर्तओं की संख्या दोनों तरफ लगभग एक समान है।

देश कानून से चलता है श्राद्धा और भक्ति से नहीं। अगर श्राद्धा के नाम हिंसा की जा रही है। और केरल की सरकार कार्रवाई कर रही है तो इससे गिरिराज सिंह को क्या दिक्कत है?

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सभी उम्र की महिलाएं सबरीमाला मंदिर में जा सकती हैं। लेकिन कुछ आतंकी प्रवृति के लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को मानने से इंकार कर रहे हैं और श्राद्धा के नाम पर लगातार हिंसा कर रहे हैं।

केरल की पिनाराई विजयन सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लागू करवाने और हिंसा से निपटने के लिए प्रशासन का इस्तेमाल कर रही है। लेकिन बीजेपी और आरएसएस नेता लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। इन बातों से साफ पता चलता है कि बीजेपी-आरएसएस की सुप्रीम कोर्ट और संविधान में कितनी आस्था है।

गिरिराज सिंह अपने ट्वीट में लिखते हैं कि ‘सनातन को बचाने के लिए सबको एक होना होगा’ क्या ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देना नहीं है? और जहां तक टीपू सुल्तान का अनुयायी होने की बात है तो… भारत की समस्त जनता को टीपू सुल्तान का अनुयायी होना चाहिए। क्योंकि टीपू सुल्तान पक्के देशभक्त थें।

टीपू सुल्तान के बारे में वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं…

जब टीपू सुल्तान अंग्रेजों से लड़ रहे थे, तब ब्राह्मण पेशवा, तंजौर और त्रावणकोर के हिंदू राजा और निजाम अंग्रेजों के जूते चाट रहे थे!

अनपढ़ संघियों को कोई बताए कि टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों, ब्राह्मण पेशवा और निजाम तीनों की संयुक्त फौज का मुकाबला किया था. मामला हिंदू-मुसलमान का था ही नहीं. देशभक्ति और गद्दारी का था. ब्राह्मण पेशवा और निजाम गद्दार थे. टीपू ईमान का पक्का देशभक्त था.

जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता था, उसके सरकारी आर्मी म्यूज़ियम ने एक लिस्ट बनाई है, उन विरोधी सेनापतियों की, जो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सबसे बडा ख़तरा बने। इस लिस्ट में टीपू सुल्तान शामिल हैं। इस लिस्ट में नेपोलियन और जॉर्ज वाशिंगटन भी हैं। भारत से सिर्फ दो नाम हैं। दूसरा नाम झाँसी की रानी का है।

संघी लोग हनुमान चालीसा के अलावा कुछ पढ़ते नहीं है, वरना मैं उन्हें ब्रिटिश आर्मी म्यूज़ियम से संबंधित खबर का लिंक पढने को कहता।

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एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि जब टीपू अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में जुटा था, तब पेशवा, तंजौर के राजा और त्रावणकोर नरेश ब्रिटिश के साथ संधि कर चुके थे। टीपू इन राजाओं के खिलाफ भी लड़ा। अब इसका क्या किया जा सकता है कि ये राजा हिंदू थे।

टीपू हैदराबाद के निज़ाम के खिलाफ भी लड़ा जो मुसलमान था। स्कूल की किताबों में तीसरा मैसूर युद्ध देखिए। इसमें टीपू के खिलाफ अंग्रेजों, पेशवा और निज़ाम की संयुक्त फ़ौज लड़ी थी।

यह हिंदू बनाम मुसलमान का मामला ही नहीं है। शर्म की बात है कि संघियों की बेवक़ूफ़ियों की वजह से वह शानदार विरासत आज विवादों में है।

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