जब पत्रकार पक्षकार बन जाता है, जब सत्ता से सवाल की जगह पर आम खाने के तरीके पर बात की जाती है, जब शोषित का शोषण करना और शोषण करने वालों का समर्थन करना पत्रकार अपना काम समझने लगते हैं तब यही होता है, जो आज शाहीन बाग़ में हुआ।
दो अलग अलग मीडिया समूहों के मगर एक ही जैसे पत्रकार सुधीर चौधरी (Sudhir Chaudhary) और दीपक चौरसिया (Deepak Chaurasia) आज शाहीन बाग़ (Shaheen Bagh) गए जहां उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। एक ही जैसे यानि एक ही सोच और एक ही एजेंडा।
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उनके हिसाब से शाहीन बाग़ तिरंगे के पीछे देश विरोधी काम कर रहा है। इन महोदय के हिसाब से प्रदर्शन एक अलोकतांत्रिक काम है जिसे नहीं किया जाना चाहिए। सुधीर चौधरी और दीपक अकेले नहीं जाते, अपने साथ पुलिस फाॅर्स लेकर जाते हैं। आखिर किस चीज़ का डर है उन्हें?
ये डर उनका खुदका फैलाया हुआ डर है। ये डर उसी का नतीजा है जो हर रात कैमरे का सहारा लेकर फैलाया जाता है। क्यों अन्य पत्रकारों को शाहीन बाग़ में इस डर का सामना नहीं करना पड़ा ये सवाल सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया से पूछा जाना चाहिए।
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सुधीर और दीपक बैरिकेडिंग के दूसरी तरफ अपने अपने कैमरा टीम के साथ खड़े रहे। शाहीन बाग़ की महिलाओं ने उनसे बात करने से साफ़ मना कर दिया। इन पत्रकारों की सच्चाई से शाहीन बाग़ की महिलाएं अच्छे से वाक़िफ़ हैं। ये महिलाएं अपने आंदोलन और देश के संविधान दोनों को समझती हैं और दोनों में आस्था रखती हैं।
तब इनके आंदोलन और इनकी समझ पर सवाल उठाना किसी भी हिसाब से ठीक नहीं है। इन पत्रकारों से बात न करके शाहीन बाग़ की महिलाओं ने गोदी मीडिया को ये सन्देश दे दिया है कि ये अपने आंदोलन के साथ किसी भी तरह कि छेडछाड बर्दाश्त नहीं करेंगी।