समीर

देवताओं का ख़ुदा से होगा काम

आदमी को आदमी दरकार है

फ़िराक़ के इस शेर का मतलब है कि भगवान, ईश्वर, ख़ुदा… ये सब दिखाई नहीं देते। आसमानी हैं।… जब ज़मीन पर इंसान को मदद की ज़रूरत पड़ती है तो उसकी मदद के लिए दूसरा इंसान ही काम आता है।

लेकिन इससे उलट ओडिशा से एक दर्दनाक घटना सामने आई है। यहाँ भगवान के लिए इंसान के दरकार को दरकिनार कर दिया गया। इसलिए कि कुछ लोगों को लगता है कि, वो जिस भगवान को मानते हैं उसने उन्हें ‘बड़ी जाति’ का और दूसरे को ‘छोटी जाति’ का बनाया है।

हुआ यूँ कि, ओडिशा के करपाबहल गाँव में 45 साल की एक औरत की मौत हो गई। उसका नाम जानकी था। वो बेहद असहाय, ग़रीब और बेबस औरत थी। उसके पति की मौत पहले ही हो चुकी थी। वो अपने दो बच्चों के साथ अपनी माँ के घर रहती थी।

जानकी जब पानी भरने के लिए गई थी तो अचानक गिर पड़ी और उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद उसके बच्चों ने पड़ोसियों से मदद की गुहार लगाई। मगर अफ़्सोस ख़ुद को ऊँची जाति का समझने के ग़ुमान में किसी ने अतिंम संस्कार के लिए उसके परिवार की मदद नहीं की।

आख़िरकार थक हार कर उसके 17 साल के नाबालिग बेटे ने उसके शव को साईकिल पर रखा और निकल पड़ा माँ के अंतिम संस्कार के लिए। उसकी माँ की अंतिम यात्रा में किसी ऊँची जाति वाले ने अपनी मौजूदगी दर्ज न कराई। अपनी माँ के शव के साथ वो अकेला… तन्हा निकल पड़ा माँ की अंतिम यात्रा लेकर। 5 किमी चलने के बाद उसने जंगल में ले जाकर माँ का अंतिम संस्कार किया।

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