केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे तमाम दावों के बावजूद देश में बेरोज़गारी घटने के बजाए बढ़ती चली जा रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ताज़ा रिपोर्ट से ख़ुलासा हुआ है कि सितंबर से दिसंबर 2019 के चार महीनों में बेरोजगारी की दर 7.5 फीसदी तक पहुंच गई है।
CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक, बेरोज़गारी के मामले में अधिक पढ़े-लिखे युवाओं की हालत सबसे ज़्यादा चिंताजनक है। उच्च शिक्षित लोगों की बेरोजगारी दर बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गई है। आंकड़े बताते हैं कि युवा ग्रेजुएट्स-पोस्ट ग्रेजुएट्स के लिए पिछला साल बेहद ख़राब रहा है।
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CMIE की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मई-अगस्त 2017 के बाद लगातार सातवीं बार बेरोजगारी बढ़ी है। मई-अगस्त 2017 में बेरोजगारी की दर 3.8 फीसदी थी।’ बता दें कि CMIE एक निजी थिंक टैंक है, जिसके सर्वे और आंकड़ों को काफी भरोसेमंद माना जाता है। सरकार की उप्लब्धि और नाकामी के लिए अक्सर इन आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।
CMIE के सर्वे के मुताबिक, जिसमें 1,74,405 घरों को शामिल किया गया है से पता चलता है कि ग्रामीण भारत के मुकाबले शहरी भारत में बेरोजगारी की दर ज्यादा है। शहरी भारत में इस दौरान बेरोजगारी की दर 9 फीसदी तक पहुंच गई। यानी शहरों में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है। जो देश में आर्थिक मंदी को साफ़ तौर पर दर्शाता है।
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ग्रामीण भारत में इस दौरान बेरोजगारी 6.8 फीसदी रही। यह हाल तब है जब कुल बेरोजगारी में करीब 66 फीसदी हिस्सा ग्रामीण भारत का होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण भारत में कम बेरोजगारी दर है और इसका भारत की समग्र बेरोजगारी दर को कम करने पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। लेकिन, ग्रामीण रोजगार खराब गुणवत्ता का है।