आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव की IRCTC घोटाले में गिरफ्तारी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय, बिहार के उप-मुख्यमंत्री (सुशील कुमार मोदी) और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश आस्थाना की ओर से सीबीआई पर दवाब बनाया जा रहा था।

लेकिन बिहार में लॉ एंड ऑर्डर की समस्या खड़ी होने की वजह से हमने उनके घर छापा नहीं मारा।

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा की गई जांच का सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को जवाब देते हुए यह स्वीकार किया है कि उन पर आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार करने का दवाब बनाया जा रहा था।

लेकिन उन्होंने इस मामले में राजनीतिक मंशा को देखते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया। साथ ही जवाब में आलोक वर्मा ने माना है कि इस मामले को लेकर लगातार पीएमओ के एक बड़े अधिकारी उनके संपर्क में थे।

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और यदि जरूरत पड़ी तो वह पीएमओ के उस अधिकारी का नाम भी सार्वजनिक करेंगे। लेकिन सीबीआई के दो निदेशकों की लड़ई में देश की सबसे बड़ी जांच ऐजंसी के दुरूपयोग की जो कहानियां एक-के-बाद-एक सामने निकल कर आ रही है उससे तो यही लगता है कि देश की लोकतंत्रिक व्यवस्था में अंदर अंदर तानाशाही मजबूत हो रही है।

सत्तारूढ दल देश की संस्थाओं के साथ खिलौने की तरह खेल रहा है। और इन संस्थाओं का दुरूपयोग कर विपक्षी नेताओं को हर संभव नुकसान पहुंचाने में लगा हुआ है। अगर हम इस मामले पर गौर करें तो पता चलता है कि सीबीआई में मोदी सरकार ने राकेश आस्थाना को जिस पद पर नियुक्त किया वैसा कोई पद पहले सीबीआई में था ही नहीं।

दूसरी बात राकेश आस्थाना के खिलाफ खुद सीबीआई में 6 मामले दर्ज हैं और इसकी जानकारी नियुक्ती से ठीक पहले सीबीआई निदेशक द्वारा नियुक्ती करने वाली संस्था केंद्रीय सतर्कता आयोग को एक पत्र के माध्यम से दी भी गई थी।

वहीं आरजेडी नेता लालू यादव ने हमेशा ही खिलाफ मामलों में उनको फसाया जा रहा है। साथ ही जिस मामले में वह सजा काट रहे है उस समय भी राकेश सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश आस्थाना का कार्यकाल था।

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सीबीआई डारेक्टर के जवाब के बाद लालू यादव की पार्टी आरजेडी की ओर से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने मोदी सरकार पर तीखा हमला किया और कहा कि राकेश आस्थाना एक बदनाम पुलिस पदाधिकारी रहे हैं।

गुजरात में थे तब इन्हें मोदी जी की तरफ से मलाईदार पोस्टिंग मिलती रही। 2002 में गोधरा में ट्रेन के डब्बों में लगी आग की जांच के लिए गठित की गई विशेष टीम में अस्थाना भी सदस्य थे। इसी टीम ने 2002 के गुजरात दंगे में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं माना था। इसके बाद मोदी ही इनको सीबीआई में लाए।

अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाने के लिए पहले वाले बदलकर सरकार ने गृह मंत्रालय में भेज दिया था। सीबीआई की बदनामी कम नहीं हो रही है। चारा घोटाले में भी अस्थाना के पैसा कमाने की चर्चा हुई थी।

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उस समय यूएन विश्वास और अस्थाना सहित अन्य पदाधिकारियों का उन लोगों से नियमित संपर्क था जो लालू को चारा घोटाले के जरिए राजनीतिक रूप से समाप्त करना चाहते थे। सीबीआई क्या-क्या फरेब करती है यह सब अब सामने आ रहा है।

आपको बता दें कि यह मामला 11 साल पूराना है। कोर्ट से तेजस्वी यादव और रावड़ी देवी को इस मामले में जमान मिल पहले ही मिल चुकी है। साथ ही लालू यादव की नियमित जामान पर कोर्ट में कल 20 नवंबर को सुनवाई होनी है।

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