इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो लड़कियों को समलैंगिक विवाह करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। न्यायलय में यूपी सरकार के वकील ने दलील दी कि इस तरह का विवाह भारतीय संस्कृति और धर्म के विरुद्ध है। इस विवादित फैसले के अनुसार समलैंगिक जोड़े संतान उत्पन्न नहीं कर सकते इसलिए उनकी शादी भी गलत होगी।

दरअसल, एक लड़की की माँ अंजू देवी ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus plea) दाखिल की थी। अंजू का कहना है कि एक 22 वर्षीय लड़की ने उनकी 23 वर्षीय बेटी को अवैध रूप से बंदी बना रखा है। उन्होंने अपनी बेटी को सौंपे जाने की गुजारिश की।

दोनों लड़कियों ने कोर्ट में पेश होकर बताया कि उन्होनें एक दूसरे से शादी कर ली है। जिसके बाद उन्होंने अपनी शादी को मान्यता दिए जाने के लिए याचिका दर्ज की। लड़कियों ने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायलय द्वारा वर्ष 2018 में सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था।

हालाँकि, न्यायधीश शेखर कुमार यादव ने अंजू देवी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को निस्तारित करते हुए लड़कियों की शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया। कोर्ट में सरकारी वकील ने कहा, “भारतीय कानून में केवल पुरुष और महिला का विवाह हो सकता है। समलैंगिक शादी से बच्चा पैदा नहीं हो सकता। इसे मनुष्य की प्रजाति को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।”

सरकारी वकील द्वारा रीती-रिवाज़ों को आधार बनाते हुए दो बालिग लड़कियों की शादी को मान्यता देने से इंकार कर दिया गया। ऐसे बहुत से जोड़े होते हैं जिनकी मेडिकल कारणों से संतान नहीं हो पाती, कुछ तो मर्ज़ी से बच्चा नहीं करते। लेकिन इस सबके बावजूद उनकी शादी को अमान्य नहीं किया जाता।

बता दें, सर्वोच्च न्यायलय ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। लेकिन अभी भी समलैंगिक जोड़ों की शादी को पंजीकृत करवाने की अनुमति नहीं है। फिर भी, दो बालिग लड़कियों के रिश्ते को गलत मानकर अंजू देवी द्वारा अपनी बेटी के अवैध रूप से बंदी बनाए जान की बात को सही नहीं कहा जा सकता।

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